Monday, May 25, 2020

ईश्वर नहीं हो तुम

जाओ नहीं मानता कि कुछ हो तुम
नहीं जानता कि कौन क्या हो तुम
यदि कर्मकांड मात्र से प्रसन्न हो
तो कोई औपचारिकता हो तुम
हाथ जोड़े जो खड़े रहे
यदि सुनता है बस उनकी
तो स्वपुजा के लालायित तुम
स्तुति करने पर फल दे जाय
त्रुटि होने पर दंड दे जाय
तर्क करने पर कुपित हो जाय
आलोचना से रुष्ट हो जाय
सर न झुका तो अनिष्ट हो जाय
क्या ऐसे ही तू भाव का भूखा कहलाय
फिर मुझे विश्वास है कि
तुम कुछ भी हो सकते हो पर ईश्वर नहीं
ईश्वर कभी चाटुकारों का नहीं होता
भक्तों को डर के साय में नहीं रखता
एजेंटों के माध्यम से नहीं मिलता
ईश्वर तो सहज कृपालु दयालु होता है
अहेतुकी कृपा देता है
उसका न कोई प्रिय न अप्रिय होता है
इन धर्म के ठेकेदारों ने तुम्हे क्या बना दिया
पास होकर तुझे कितना दूर कर दिया

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