Thursday, May 21, 2020

कांटों पर जलते हुए

कांटों पर जलते हुए

देख विधाता तूने लिख दी
पीड़ हमारे जीवन
पर कांटों में चलते हैं हम
जैसे सुंदर मधुवन

देख पैर के छालों से
टप टप रिसता पानी
और भूख से सूखा ये तन
खुद ही कहे कहानी
मगर नहीं घुटने टेकेगा
सागर जैसा ये मन
पर कांटों में चलते हैं हम
जैसे सुंदर मधुवन।

बाग सजाकर दुनिया के
पाई हमने शूल
अपने घर की स्वर्णभस्म
अब बनी राह की धूल
खिले पुष्प से मुरझाए हम
ढलक रहा है यौवन
पर कांटों में चलते हैं हम
जैसे सुंदर मधुवन।

जिन हाथों से कर्म किया वो
कहाँ बैठ सुख पाते
अनथक चलते जाते हैं हम
अपने खेत बुलाते
अपने हाथों से खेतों को
देंगे हम नव जीवन
पर कांटों में चलते हैं हम
जैसे सुंदर मधुवन।

No comments: