देख विधाता तूने लिख दी
पीड़ हमारे जीवन
पर कांटों में चलते हैं हम
जैसे सुंदर मधुवन
देख पैर के छालों से
टप टप रिसता पानी
और भूख से सूखा ये तन
खुद ही कहे कहानी
मगर नहीं घुटने टेकेगा
सागर जैसा ये मन
पर कांटों में चलते हैं हम
जैसे सुंदर मधुवन।
बाग सजाकर दुनिया के
पाई हमने शूल
अपने घर की स्वर्णभस्म
अब बनी राह की धूल
खिले पुष्प से मुरझाए हम
ढलक रहा है यौवन
पर कांटों में चलते हैं हम
जैसे सुंदर मधुवन।
जिन हाथों से कर्म किया वो
कहाँ बैठ सुख पाते
अनथक चलते जाते हैं हम
अपने खेत बुलाते
अपने हाथों से खेतों को
देंगे हम नव जीवन
पर कांटों में चलते हैं हम
जैसे सुंदर मधुवन।
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