Monday, May 25, 2020

इब्तिदा-ए-इश्क़ है रोता है क्या

1.इब्तिदा-ए-इश्क़ है रोता है क्या

आगे-आगे देखिये होता है क्या

क़ाफ़िले में सुबह के इक शोर है

यानी ग़ाफ़िल हम चले सोता है क्या

सब्ज़ होती ही नहीं ये सरज़मीं

तुख़्मे-ख़्वाहिशदिल में तू बोता है क्या

ये निशान-ऐ-इश्क़ हैं जाते नहीं 

दाग़ छाती के अबसधोता है क्या

गै़रते-युसूफ़ ये वक़्त ऐ अजीज़


2. हमारे आगे तेरा जब किसी ने नाम लिया

दिल-ए-सितम-ज़दा को हमने थाम-थाम लिया

खृराब रहते थे मस्जिद के आगे मयख़ाने

निहाह-ए-मस्त ने साक़ी की इंतक़ाम लिया

वो कज-रविश न मिला मुझसे रास्ते में कभू

न सीधी तरहा से उसने मेरा सलाम लिया

मेरे सलीक़े से मेरी निभी मोहब्बत में

तमामा उम्र मैं नाकामियों से काम लिया

अगपचे गोशा-गुज़ीं हूं मैं शाइरों में मीर

मेरे शोर ने रू-ए-ज़मीं तमाम किया.

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