आगे-आगे देखिये होता है क्या
क़ाफ़िले में सुबह के इक शोर है
यानी ग़ाफ़िल हम चले सोता है क्या
सब्ज़ होती ही नहीं ये सरज़मीं
तुख़्मे-ख़्वाहिशदिल में तू बोता है क्या
ये निशान-ऐ-इश्क़ हैं जाते नहीं
दाग़ छाती के अबसधोता है क्या
गै़रते-युसूफ़ ये वक़्त ऐ अजीज़
2. हमारे आगे तेरा जब किसी ने नाम लिया
दिल-ए-सितम-ज़दा को हमने थाम-थाम लिया
खृराब रहते थे मस्जिद के आगे मयख़ाने
निहाह-ए-मस्त ने साक़ी की इंतक़ाम लिया
वो कज-रविश न मिला मुझसे रास्ते में कभू
न सीधी तरहा से उसने मेरा सलाम लिया
मेरे सलीक़े से मेरी निभी मोहब्बत में
तमामा उम्र मैं नाकामियों से काम लिया
अगपचे गोशा-गुज़ीं हूं मैं शाइरों में मीर
मेरे शोर ने रू-ए-ज़मीं तमाम किया.
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