Thursday, May 21, 2020

अकबर इलाहाबादी शायरी

हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम 

वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता 







 
  
इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद 

अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता 



 
 

हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना 

हसीनों को भी कितना सहल है बिजली गिरा देना 





 
 
दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ 

बाज़ार से गुज़रा हूँ ख़रीदार नहीं हूँ 







 
 
मज़हबी बहस मैं ने की ही नहीं 

फ़ालतू अक़्ल मुझ में थी ही नहीं 







 
  

पैदा हुआ वकील तो शैतान ने कहा 

लो आज हम भी साहिब-ए-औलाद हो गए 







 
 
जो कहा मैं ने कि प्यार आता है मुझ को तुम पर 

हँस के कहने लगा और आप को आता क्या है 



 
 
रहता है इबादत में हमें मौत का खटका 

हम याद-ए-ख़ुदा करते हैं कर ले न ख़ुदा याद 







 
 
अकबर दबे नहीं किसी सुल्ताँ की फ़ौज से 

लेकिन शहीद हो गए बीवी की नौज से 



 
 

मैं भी ग्रेजुएट हूँ तुम भी ग्रेजुएट 

इल्मी मुबाहिसे हों ज़रा पास आ के लेट 



 
 

हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है 

डाका तो नहीं मारा चोरी तो नहीं की है 







 
  
बी.ए भी पास हों मिले बी-बी भी दिल-पसंद 

मेहनत की है वो बात ये क़िस्मत की बात है 



 
 
लिपट भी जा न रुक 'अकबर' ग़ज़ब की ब्यूटी है 

नहीं नहीं पे न जा ये हया की ड्यूटी है 



 
 

ग़ज़ब है वो ज़िद्दी बड़े हो गए 

मैं लेटा तो उठ के खड़े हो गए 



 
 

हम ऐसी कुल किताबें क़ाबिल-ए-ज़ब्ती समझते हैं 

कि जिन को पढ़ के लड़के बाप को ख़ब्ती समझते हैं 







 
 

इस क़दर था खटमलों का चारपाई में हुजूम 

वस्ल का दिल से मिरे अरमान रुख़्सत हो गया 



 
 
धमका के बोसे लूँगा रुख़-ए-रश्क-ए-माह का 

चंदा वसूल होता है साहब दबाव से 



 
 

जो वक़्त-ए-ख़त्ना मैं चीख़ा तो नाई ने कहा हँस कर 

मुसलमानी में ताक़त ख़ून ही बहने से आती है 



 
 
हक़ीक़ी और मजाज़ी शायरी में फ़र्क़ ये पाया 

कि वो जामे से बाहर है ये पाजामे से बाहर है 



 
 
कोट और पतलून जब पहना तो मिस्टर बन गया 

जब कोई तक़रीर की जलसे में लीडर बन गया 







 
 


No comments: