Monday, May 18, 2020

शहर में दर-ब-दर भटकता है

चार तिनके उठा के जंगल से 
एक बाली अनाज की ले कर 
चंद क़तरे बिलकते अश्कों के 
चंद फ़ाक़े बुझे हुए लब पर 
मुट्ठी भर अपनी क़ब्र की मिट्टी 
मुट्ठी भर आरज़ुओं का गारा 
एक तामीर की, लिए हसरत 
तेरा ख़ाना-ब-दोश बे-चारा 
शहर में दर-ब-दर भटकता है 
तेरा कांधा मिले तो सर टेकूं 

-गुलजार 

(किताब यार जुलाहे का एक संपादित अंश)

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