Tuesday, May 26, 2020

शामें - फ़ुर्सत में कोई रोज रुलाता है मुझे

शामें - फ़ुर्सत में कोई रोज रुलाता है मुझे
याद बीते हुए लम्हों की दिलाता है मुझे

बेखुदी में लिए जाता है कोई तन्हा मुझे ,
मेरी मंजिल का पता कौन बताता है मुझे

डगमगाते हैं कदम कैसे संभालू खुद को ,
मस्त नजरों से कोई जाम पिलाता है मुझे

कौन पोछेगा मेरी आँखों से बहते आसूं ,
जिसको देखूं परेशाँ नजर आता है मुझे

करवटें बदलता रहता हूँ मै तो आजकल ,
यादों का समंदर रात भर जगाता है मुझे! 

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