Saturday, May 16, 2020

सयुंक्त परिवार

बहुत प्यार दुलार से चुना एकएक मोती
बना तब मेरे गले का हार
सभी रिश्तों को सहेज समेट कर
बन पाया सयुंक्त परिवार

जीवन ने सिखलाया था हमको
करना रिश्तों का मान सम्मान
बड़ो से बनी थी घर की छाया
बच्चों से बढ़ा था प्यार दुलार
ऐसा था सयुंक्त परिवार

दादा जी का अद्भुत ज्ञान
दादी का अनोखा दुलार
माँ पिता की लगे जब फटकार
दादी का आँचल बनजाय पतवार
मौसा मौसी सब चीज दिलावें
गोद उठा उठा कर पुचकारें
फूफा खूब घुमा कर लावें
बुआ रानी खूब लड्डू खिलावें
कहानी सुनाने को ताऊ ताई
सदा ही रहते थे तैयार
माँ पापा याद आते जब तब
पुस्तक बस्ते की हो दरकार
ऐसा होता था सयुंक्त परिवार

आज एकल परिवारों के बच्चों का
हाय ये कैसा है दुर्भाग्य
माँ पिता एक भाई यहॉ बहना
यही है इनका परिवार
चाचा ताऊ अतिथि हैं इनके
क्या ये जाने, क्या होता है सयुंक्त परिवार
भाभी के संग हंसी ठिठोली
भाई संग बांटे आचार विचार
चाचा चाची संग बीते प्यारे वो दिन
समझाते रिश्तों का अद्भुत संसार

बड़ा सा होता था एक बरामदा
अम्मा की खटिया बीचों बीच
सबके हाथों में एक एक प्याली
बहनें बनाती गरमागरम पकौड़ी
ऐसे होता था संध्या का सत्कार
यही तो था सयुंक्त परिवार

बड़ी सी होती थी एक रसोई
बहुएं बनाती थी प्रेमसे दालभात
बातें करते, हंसते मुस्कुराते
दुःख सुख सारे यूहीं बांटे जाते
नाकुछ मेरा नाकुछ तेरा
ये सिखलाते सयुंक्त परिवार ll

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