Monday, May 18, 2020

तबियत ख़ुद बहल जाती है बहलाई नहीं जाती

हर मंज़र के अंदर भी इक मंज़र है
देखने वाला भी तो हो तैयार मुझे
- अतीक़ुल्लाह


ख़्वाहिश है कि ख़ुद को भी कभी दूर से देखूँ
मंज़र का नज़ारा करूँ मंज़र से निकल कर
- सऊद उस्मानी

कोई दिलकश नज़ारा हो कोई दिलचस्प मंज़र हो
तबीअत ख़ुद बहल जाती है बहलाई नहीं जाती
- शकील बदायुनी


वो अलविदा का मंज़र वो भीगती पलकें
पस-ए-ग़ुबार भी क्या क्या दिखाई देता है
- शकेब जलाली


उस आइने में था सरसब्ज़ बाग़ का मंज़र
छुआ जो मैं ने तो दो तितलियाँ निकल आईं
- लियाक़त जाफ़री


प्यास बुझ जाए ज़मीं सब्ज़ हो मंज़र धुल जाए
काम क्या क्या न इन आँखों की तेरी आए हमें
- अब्दुल अहद साज़

दुनिया-भर में जितने मंज़र अच्छे हैं
उन का हुस्न और शोर हवा का तेरे नाम
- ताजदार आदिल


कभी दिखा दे वो मंज़र जो मैं ने देखे नहीं
कभी तो नींद में ऐ ख़्वाब के फ़रिश्ते आ
- कुमार पाशी

सारे मंज़र में समाया हुआ लगता है मुझे
कोई इस शहर में आया हुआ लगता है मुझे
- अज़हर अदीब


खुला न उस पे कभी मेरी आँख का मंज़र
जमी है आँख में काई कोई दिखाए उसे
- सिद्दीक़ शाहिद

सारे मंज़र हसीन लगते हैं
दूरियाँ कम न हों तो बेहतर है
- साबिर


मंज़र था राख और तबीअत उदास थी
हर-चंद तेरी याद मिरे आस पास थी
- वज़ीर आग़ा

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