है तिल तिल जल रहा देखो।
ना मांगा आसमाँ उसने,
है सूरज ढल रहा देखो।
सुखनवर हाँ मेरे सब हैं,
कि निज नज़रों में जो रब हैं।
जीवित तांडव जहाँ नित दिन,
ये कैसा कल रहा देखो।
ये मेरा और मेरा है,
जो सूरज बिन सवेरा है।
ना हम की बात है बाकी,
ये सौदा फल रहा देखो।
मेरे औचित्य का होना,
था झूठा सत्य का रोना।
त्वरित कहाँ पाप का अंतर,
ना कर वो मल रहा देखो।
न नीयत ठीक नियति की,
न चिंता कोई परिणति की।
ये गज मदमस्त है झूमा,
जो पल पल छल रहा देखो।
ना पांवों में रही चप्पल,
उदर रहा सूखता बिन जल।
ये तलवा भी बड़ा ज़िद्दी,
है किस गति चल रहा देखो।
मोटरी हाथों में टांगे,
लिये बक्सा सड़क लांघे।
दोपहरी आग बन कहती,
है जीवन टल रहा देखो।
थी दाँतों ने चखी जिह्वा,
ज्यों विरहन रो रही विधवा।
वो सचमुच था बना पत्थर,
जो भगवन कल रहा देखो।
धरा माता मेरी कल थी,
जो भरती पेट पल पल थी।
जो ममता भी लगी तपने,
ये कैसा पल रहा देखो।
मैं कितना और क्या बोलूँ,
मैं मानव और क्या तोलूँ।
विरह का ज्वार ना मामूल,
है कागज़ जल रहा देखो।
No comments:
Post a Comment