Tuesday, May 19, 2020

किनारा क्यों किया तुमने

किनारा सामने था तब किनारा क्यों किया तुमने,
मेरी आँखों के आगे ये तमाशा क्यों किया तुमने।

अंधेरा है अगर मेरा मुक़द्दर जानते थे तुम,
ज़रा सी देर की ख़ातिर उजाला क्यों किया तुमने।

भरोगे एक दिन तुम सबकी झोली चांद तारों से,
मुहब्बत में फ़क़ीरों से ये वादा क्यों किया तुमने।


चले आए मेरे ख़्वाबों में ये तो ठीक था लेकिन,
भरे बाज़ार में ख़्वाबों का सौदा क्यों किया तुमने।

मेरी तन्हाइयों के ज़ख़्म तुमसे पूछते हैं ये,
बताओ अब तो मेरे साथ ऐसा क्यों किया तुमने।

मुझे धोके में रक्खा फिर अना लूटी गई मेरी,
वफ़ादारी में मेरे साथ धोका क्यों किया तुमने।

परिंदे की तरह पाला था तुमने प्यार से मुझको,
मुझे घर से उड़ाने का इरादा क्यों किया तुमने।

कितना भी गहरा हो रिश्ते की तरफ मत जाना

कितना भी गहरा हो रिश्ते की तरफ मत जाना,
उसके मासूम से चेहरे की तरफ मत जाना।

जी भी दिखता हो मगर सच है के वो क़ाफ़िर है,
उसके तुम भूल के सजदे की तरफ मत जाना।

दुश्मनी उसकी है पत्थर से दिखाने के लिए,
हो समझदार तो शीशे की तरफ मत जाना।

छाँव गहरी है बहुत और है ठंडी भी मगर,
गिरती दीवार के साए की तरफ मत जाना।

वो है किरदार कहानी का पुराना पापी,
तुम सुनाए हुए किस्से की तरफ मत जाना।

उसने बर्बादी को मंज़िल में छिपा रखा है,
बात ये मान के रस्ते की तरफ मत जाना।

पास में उसके जो अल्फ़ाज़ हैं ,ज़हरीले हैं,
उसके आसान से लहज़े की तरफ मत जाना।
रहा था मुझमें कभी वो मलाल छीन लिया,
सफ़र में उम्र का हर एक साल छीन लिया।

उसे क़रीब मैं पाता था जिसके होने से,
उसी ने ज़ेह्न से मेरा ख़याल छीन लिया।

नज़र में उसकी रहूँ सोचकर मिला लेकिन,
दिखा के आईना उसने जमाल छीन लिया।

मैं इससे पहले के कुछ पूछता सलीके से,
सवाल पूछ के उसने सवाल छीन लिया।

उसे ये कैसे बताता के कुछ तो मैं भी हूँ,
के उसने अपने हुनर से कमाल छीन लिया।

मैं आफ़ताब रहा था किसी ज़माने में,
मगर समय ने मेरा सब ज़लाल छीन लिया।

अजब ये हाल किया मिल के मछलियों ने मेरा,
बड़े तपाक से हाथों का जाल छीन लिया।

-सुरेंद्र चतुर्वेदी 

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