डरते हैं ऐ ज़मीन तिरे आदमी से हम
- अज्ञात
बहुत हसीन सही सोहबतें गुलों की मगर
वो ज़िंदगी है जो कांटों के दरमियां गुज़रे
- जिगर मुरादाबादी
दोस्तों से मुलाक़ात की शाम है
ये सज़ा काट कर अपने घर जाऊँगा
- मज़हर इमाम
हज़ार चेहरे हैं मौजूद आदमी ग़ाएब
ये किस ख़राबे में दुनिया ने ला के छोड़ दिया
- शहज़ाद अहमद
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