सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया
- साहिर लुधियानवी
मैं उस के सामने से गुज़रता हूँ इस लिए
तर्क-ए-तअल्लुक़ात का एहसास मर न जाए
- फ़ना निज़ामी कानपुरी
हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन
ख़ाक हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होते तक
- मिर्ज़ा ग़ालिब
अदा हुआ न क़र्ज़ और वजूद ख़त्म हो गया
मैं ज़िंदगी का देते देते सूद ख़त्म हो गया
- फ़रियाद आज़र
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