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आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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कसक दिल की किससे कहूँ
जब से देखा है उनका चांद सा चेहरा ।
थकना भी लाज़मी था कुछ काम करते करते
राह की चाह
मेरे लिए काफी है।
किसी से कुछ तोकिसी से कुछ निकला
मेरे लिए काफी है।
राह की चाह
जब से देखा है उनका चांद सा चेहरा ।
किताब-ए-आरज़ू के गुम-शुदा कुछ बाब रक्खे हैं
मैं एक नदी सी
होशियारी दिल-ए-नादान बहुत करता है व अन्य
ज़मी पर लहू का हर क़तरा हिसाब मांग रहा है
चिलचिलाती धूप से उठती तपन पर शेर
ये दीन के ताजिर ये वतन बेचने वाले
पलों को दर्द से जोड़ दिया!
तुम मेरी आदतें न अपनाओ
तुझे देखूँ तो सिर्फ तेरा हो जाऊँ!
गर तुम्हारा प्यार है तो ज़िन्दगी गुलज़ार है
बिगड़े हुए हालात बदल जाएंगे एक दिन।
दरिया शायरी
वो ग़ैर था उसे अपना बना के छोड़ दिया
दरिया शायरी
ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा
अपनी आज़ादी का मंजर कुछ ऐसा होगा,
हम को न मिल सका तो फ़क़त इक सुकून-ए-दिल
बिगड़े हुए हालात बदल क्यों नहीं जाते
बरसों बीत गए दिल से मस्कुराए हुए
अभी तो मंजिल दूर है, दूर है तेरा गाँव ।
एक शाम थी, एक डाल थी
शामें - फ़ुर्सत में कोई रोज रुलाता है मुझे
हम समय की रेत पर, रख पाँव अपने, चल पड़े।
दाग देहलवी शायरी
वो पैदल चल रहा देखो
ईश्वर नहीं हो तुम
अल्फाज कम पर जाते थे
ईद शायरी
3 कविताएँ
इब्तिदा-ए-इश्क़ है रोता है क्या
उन बस्तियों से गुज़रना ही नहीं है
मजरुह सुल्तानपुरी शायरी
ऐ आसमान तेरे ख़ुदा का नहीं है ख़ौफ़
माँ
क्या ख़ता की थी हमनेजो तुम रूठ गए
यूँ देखिए तो आँधी में बस इक शजर गया
अपने होने का फिर एलान किया जाएगा
ना मिला ना की कुछ बात
छेड़ती हैं कभी लब को कभी रुख़्सारों को
मैं अपनें दिल को जलाकर भी क्या करूँ ?
जिन्दगी की जरूरत हो
समस्त शिविरों को मैं विजयी प्रणाम करता हूं
पाँव के छाले शायरी
जो बेघर हैं तूफां में, वो महज़ प्यादे हैं |
मेरी दुआओं जरा साथ साथ ही रहना - राहत इंदौर
तू तसल्ली है दिलासा है दुआ है क्या है
मेरी दुआओं जरा साथ साथ ही रहना - राहत इंदौर
अकबर इलाहाबादी शायरी
तमन्नाएँ थीं ख्वाबें बेसुमार थीं
कांटों पर जलते हुए
कटती है आरज़ू के सहारे पे ज़िंदगी
उदासी शायरी
ऐसे ना छोड़ना मुझे
मिजाज शायरी
बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी
लौट जाना शायरी
मैं बहुत दूर निकल आया हूं।
हम न होंगे तो ये दुनिया दर-ब-दर हो जाएगी
जो हैं मज़लूम उन को तो तड़पता छोड़ देते हैं
हिम्मत रख बदलेगा मंजर
मैं उस के सामने से गुज़रता हूँ इस लिए
रक्ख पराती माथे पर मजदूर चले
किनारा क्यों किया तुमने
बहुत खास हो तुम
पैदल शायरी
चांद चांद होता है
हर पल ही मुस्कराते रहे हम बस यही ज़िंदगी है।
किसी को क्या पता था इस अदा पर मर मिटेंगे हम
तुझसे मिलने को कभी हम जो मचल जाते हैं
यूं तो है बहारां का मौसम
लाखों शक्लों के मेले में तनहा रहना मेरा काम...
महामारी लगी थी
मैं हूँ मजदूर
तबियत ख़ुद बहल जाती है बहलाई नहीं जाती
मैं हूँ मजदूर
शहर में दर-ब-दर भटकता है
विश्वास तो रखना होगा!
अभी हयात का माहौल ख़ुश-गवार नहीं
किसी भी शख्स में अच्छाई नहीं दिखती।।
नसीर तुराबी की शायरी
अब मसीहा भी क्या दवा देगा
चिड़ियों का कलरव, नदियों की सरगम
बहुत कुछ और भी है इस जहाँ में
सयुंक्त परिवार
वीराना शायरी
देखोगे तो आएगी तुम्हें अपनी जफ़ा याद
तेरे साथ तेरी याद आई क्या तू सचमुच आई है
प्रकृति की आगोश में हैं भांति भांति के रंग.
परवीन शाकिर शायरी
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं ।
परवीन शाकिर शायरी
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Thursday, May 28, 2020
तुझे देखूँ तो सिर्फ तेरा हो जाऊँ!
दो इजाजत तो करीब हो जाऊँ,
बना अपना तो तुझमें खो जाऊँ,
कैसी मासूमियत है तेरी सनम,
तुझे देखूँ तो सिर्फ तेरा हो जाऊँ!
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