Saturday, May 30, 2020

राह की चाह

राह की चाह 

मन विक्षिप्त तन विक्षिप्त
जीवन का हर क्षण विक्षिप्त
श्वसन का हर कण है कहता
कब तक जीवन है संक्षिप्त

राहो मे उलझने है इतनी
दिल भी उसकी टोह ना लेता
पग पग पत्थर मिलते ऐसे
मन मदमस्त हो नशे मे जैसे

कुछ करने की ठानी है जो
मिलता कुछ भी समय पे ना वो
अब तो राही थक जाएगा
समय पे कुछ ना हाथ आएगा

बस एक आशा विश्वास लिए हम
कुछ कर जाने का ठान लिए हम
कभी तो वह आएगा सवेरा
जिसमे मिलेगा एक नया बसेरा

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