अभी हयात का माहौल ख़ुश-गवार नहीं
- साहिर लुधियानवी
भीड़ तन्हाइयों का मेला है
आदमी आदमी अकेला है
- सबा अकबराबादी
तुम ने छेड़ा तो कुछ खुले हम भी
बात पर बात याद आती है
- अज़ीज़ लखनवी
किसी अकेली शाम की चुप में
गीत पुराने गा के देखो
- मुनीर नियाज़ी
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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