Tuesday, May 26, 2020

एक शाम थी, एक डाल थी

एक शाम थी, एक डाल थी
कुछ पंछियों की लंबी उड़ान थी
केसरी पुता एक धीर गगन
कुछ बादलों की कतार थी
सड़कों पर रेंगती गाड़ियां
मेरी तुमसे मिलने की प्यास थी

तुम सब कुछ ही तो जानते हो
झूठा, मैला, सब पहचानते हो
मेरी तुमसे कभी कोई शिकायत न थी
अंधरे बंद किवाड़ों के भीतर
कभी कोई आवाज न थी
पर्दे खुले तो हैं अब तक,
किन्तु! मंच पर कोई जात न थी..

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