तू हाल हमारा देख जिगर यक लहजा हमें आराम नहीं
सब से तो मुख़ातिब है लेकिन हम तक ही ये दौरे-जाम नहीं
दिल तुझसे ख़फ़ा तो है साक़ी तुझपर है मगर इल्ज़ाम नहीं
क्यों उसकी गली से उठ जायें क्यों ज़ख़्म न अबके हम खायें
बर्बाद तो है ये दिल मेरा इस दर्जा मगर नाकाम नहीं
होती है सुबह जिसके रुख़ से हम भी हैं फ़िदा उस काफ़िर पे
वो कह दे तो ये शब रात नहीं वो कह दे तो सुब्हो-शाम नहीं
ज़ाहिद तू न यां की सोच मियां जा देख ले अपना हाल ज़रा
आंखों से टपकते अश्क नहीं हाथों में छलकता जाम नहीं
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