Monday, May 18, 2020

किसी भी शख्स में अच्छाई नहीं दिखती।।

ग़रीबों की तुझे क्यो आंख पथराई नहीं दिखती।
मसीहा अब तेरे अन्दर मसीहाई नहीं दिखती।।

ज़ुबा सूखी, बदन टूटा, हजा़रो पॉव में छाले।
अमीर ए मुल्क तेरी आँखों को सच्चाई नहीं दिखती।।

कोई भी देखिये चैनल, धर्म के ज़ात के झगड़े।
सहाफत को सियासत की तमाशाई नहीं दिखती।।

जो संसद में छिपे बैठे क़बा ओढ़े शराफ़त की।
मुझे तो इन में रत्ती भर भी अच्छाई नहीं दिखती।।

हकीकत है, तजुर्बा है, मुझे दुनियां की जीनत का।
अगर पल्ले में पैसा हो तो मँहगाई नहीं दिखती।।

गरीबों के दिलो में जिंदगी के ख़्वाब है लेकिन।
मुझे आंखों में जिन्दा इन के बिनाई नहीं दिखती।।

कोई टीवी पे कहता है बुलंदी छू रहा भारत।
हकीकत में तरक्की एक चौथाई नहीं दिखती।।

बुजुर्गो से मिली जो सीख मैं तुम को बताता हूं।
सलीके से करी जाये तो तुरपाई नहीं दिखती।।

ये मिसरा कह रहा हूं मैं तकब्बुर के हवाले से।
अगर सूरज हो सर पे अपनी परछाई नहीं दिखती।।

तुम्हें हम ढूंढते हैं रात भर ख्वाबो के महलों में।
मगर तुम क्या तुम्हारी हम को परछाई नहीं दिखती।।

न जाने कौन सी तहज़ीब के हामी हुए हैं हम।।
किसी भी शख्स में अच्छाई नहीं दिखती।।

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