Saturday, June 13, 2020

कोई फ़रियाद तिरे दिल में दबी हो जैसे

कोई फ़रियाद तिरे दिल में दबी हो जैसे
तू ने आंखों से कोई बात कही हो जैसे

जागते जागते इक उम्र कटी हो जैसे
जान बाक़ी है मगर सांस रुकी हो जैसे

हर मुलाक़ात पे महसूस यही होता है
मुझ से कुछ तेरी नज़र पूछ रही हो जैसे

राह चलते हुए अक्सर ये गुमां होता है
वो नज़र छुप के मुझे देख रही हो जैसे

एक लम्हे में सिमट आया है सदियों का सफ़र
ज़िंदगी तेज़ बहुत तेज़ चली हो जैसे

इस तरह पहरों तुझे सोचता रहता हूं मैं
मेरी हर सांस तिरे नाम लिखी हो जैसे

-फैज अन्वर 

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