कि ख़ुद अपने ही हाथों से बना करती हैं तक़दीरें
- अज्ञात
हाथ में चाँद जहाँ आया मुक़द्दर चमका
सब बदल जाएगा क़िस्मत का लिखा जाम उठा
- बशीर बद्र
टूट पड़ती थीं घटाएँ जिन की आँखें देख कर
वो भरी बरसात में तरसे हैं पानी के लिए
- सज्जाद बाक़र रिज़वी
गुज़रे हैं आठ दिन की ज़ियारत नहीं हुई
इस बे-नसीब से कोई ख़िदमत नहीं हुई
- मिर्ज़ा सलामत अली दबीर
वो हम से मुकद्दर हैं तो हम उन से मुकद्दर
कह देते हैं साफ़ अपनी सफ़ाई नहीं जाती
- जलाल लखनवी
रोज़ वो ख़्वाब में आते हैं गले मिलने को
मैं जो सोता हूँ तो जाग उठती है क़िस्मत मेरी
- जलील मानिकपूरी
कभी मैं अपने हाथों की लकीरों से नहीं उलझा
मुझे मालूम है क़िस्मत का लिक्खा भी बदलता है
- बशीर बद्र
खो दिया तुम को तो हम पूछते फिरते हैं यही
जिस की तक़दीर बिगड़ जाए वो करता क्या है
- फ़िराक़ गोरखपुरी
मिरी तरह न ज़िंदगी किसी की यूँ अजीब हो
नसीब मौत हो अगर तो ज़िंदगी नसीब हो
- अर्श मलसियानी
हम भी नसीब से जो सितारा-नसीब थे
सूरज का इंतिज़ार किया और जल बुझ
- सहबा अख़्तर
बुलबुल को बाग़बाँ से न सय्याद से गिला
स्मत में क़ैद लिक्खी थी फ़स्ल-ए-बहार में
- बहादुर शाह ज़फ़र
तदबीर से क़िस्मत की बुराई नहीं जाती
बिगड़ी हुई तक़दीर बनाई नहीं जाती
- दाग़ देहलवी
'अदम' रोज़-ए-अजल जब क़िस्मतें तक़्सीम होती थीं
मुक़द्दर की जगह मैं साग़र-ओ-मीना उठा लाया
- अब्दुल हमीद अद
ऐसी क़िस्मत कहाँ कि जाम आता
बू-ए-मय भी इधर नहीं आई
- मुज़्तर ख़ैराबादी
दौलत नहीं काम आती जो तक़दीर बुरी हो
क़ारून को भी अपना ख़ज़ाना नहीं मिलता
- मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
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