Friday, June 12, 2020

नसीब शायरी

ख़ुदा तौफ़ीक़ देता है जिन्हें वो ये समझते हैं 
कि ख़ुद अपने ही हाथों से बना करती हैं तक़दीरें 
- अज्ञात

हाथ में चाँद जहाँ आया मुक़द्दर चमका 
सब बदल जाएगा क़िस्मत का लिखा जाम उठा 
- बशीर बद्र

टूट पड़ती थीं घटाएँ जिन की आँखें देख कर 
वो भरी बरसात में तरसे हैं पानी के लिए 
- सज्जाद बाक़र रिज़वी

गुज़रे हैं आठ दिन की ज़ियारत नहीं हुई
इस बे-नसीब से कोई ख़िदमत नहीं हुई
- मिर्ज़ा सलामत अली दबीर

वो हम से मुकद्दर हैं तो हम उन से मुकद्दर
कह देते हैं साफ़ अपनी सफ़ाई नहीं जाती
- जलाल लखनवी

रोज़ वो ख़्वाब में आते हैं गले मिलने को 
मैं जो सोता हूँ तो जाग उठती है क़िस्मत मेरी 
- जलील मानिकपूरी


कभी मैं अपने हाथों की लकीरों से नहीं उलझा 
मुझे मालूम है क़िस्मत का लिक्खा भी बदलता है 
- बशीर बद्र

खो दिया तुम को तो हम पूछते फिरते हैं यही 
जिस की तक़दीर बिगड़ जाए वो करता क्या है 
- फ़िराक़ गोरखपुरी

मिरी तरह न ज़िंदगी किसी की यूँ अजीब हो
नसीब मौत हो अगर तो ज़िंदगी नसीब हो
- अर्श मलसियानी

हम भी नसीब से जो सितारा-नसीब थे
सूरज का इंतिज़ार किया और जल बुझ
- सहबा अख़्तर

बुलबुल को बाग़बाँ से न सय्याद से गिला 
स्मत में क़ैद लिक्खी थी फ़स्ल-ए-बहार में 
- बहादुर शाह ज़फ़र

तदबीर से क़िस्मत की बुराई नहीं जाती 
बिगड़ी हुई तक़दीर बनाई नहीं जाती 
- दाग़ देहलवी

'अदम' रोज़-ए-अजल जब क़िस्मतें तक़्सीम होती थीं 
मुक़द्दर की जगह मैं साग़र-ओ-मीना उठा लाया 
- अब्दुल हमीद अद

ऐसी क़िस्मत कहाँ कि जाम आता 
बू-ए-मय भी इधर नहीं आई 
- मुज़्तर ख़ैराबादी

दौलत नहीं काम आती जो तक़दीर बुरी हो 
क़ारून को भी अपना ख़ज़ाना नहीं मिलता 
- मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

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