ख़ामोशी भी है ये आवाज़ भी है
- अर्श मलसियानी
मोहब्बत सोज़ भी है साज़ भी है
ख़मोशी भी है ये आवाज़ भी है
- अर्श मलसियानी
टूट पड़ती थीं घटाएँ जिन की आँखें देख कर
वो भरी बरसात में तरसे हैं पानी के लिए
- सज्जाद बाक़र रिज़वी
अगरचे ज़ोर हवाओं ने डाल रक्खा है
मगर चराग़ ने लौ को संभाल रक्खा है
- अहमद फ़राज़
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