Friday, June 26, 2020

जी चाहता है मैं तिरी आवाज़ चूम लूं

लहजा कि जैसे सुब्ह की ख़ुश्बू अज़ान दे
जी चाहता है मैं तिरी आवाज़ चूम लूं
- बशीर बद्र

एक हो जाएं तो बन सकते हैं ख़ुर्शीद-ए-मुबीं
वर्ना इन बिखरे हुए तारों से क्या काम बने
- अबुल मुजाहिद ज़ाहिद

इक मुअम्मा है समझने का न समझाने का
ज़िंदगी काहे को है ख़्वाब है दीवाने का
- फ़ानी बदायूंनी

दुश्मनों से प्यार होता जाएगा
दोस्तों को आज़माते जाइए

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