Wednesday, June 10, 2020

चलते हुए पांव, अक्सर लड़खड़ाते हैं

चलते हुए पांव, अक्सर लड़खड़ाते हैं
निगाहों का निशाना जहां हम हटाते हैं

पूछते हैं लोग कि आपको कहीं चोट तो नहीं आई
फिर कैसे कहूं कि इस उम्र में हमने थी आंख लड़ाई

मियां ऐ दिल ही जानता है कि इस बुढ़ापे में इश्क़ का अपने कैसा मजा होता है
कंपकंपाती देह और लड़खड़ाते पैर फिर भी इस उम्र में गिरने का नशा होता है

हैरां दिल है कि अभी इश्क़ मुकम्मल हुआ या नहीं
एकबार तू बता दे तेरे आईने में कहीं हैं भी या नहीं

कोई नहीं समझता कि गिरते-गिरते सिर के बाल सारे गिर गए
अस्सी की दहलीज पर जनाब बीस के दिग विजय जैसे हो गए

आपने देखा होगा एक नवजवां कवि वीर रस की रचना करता है
वही बुढ़ापा आने पर श्रृंगार रस में जवानी के अश्रु फेंका करता है

ऐ जो मोहब्बत है न जीने देती है और न मरने देती है
बस जिंदगी और मौत दोनों का अंदाज बदल देती है

जब इतनी ही चाहत थी तो रुसवा क्यों कर दिया
उजाड़ कर आशियां हमारा जहां बर्बाद कर दिया

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