एक तख़्ती अम्न के पैग़ाम की
टांग दीजे ऊंचे मीनारों के बीच
- अज़ीज़ नबील
इक रात वो गया था जहां बात रोक के
अब तक रुका हुआ हूं वहीं रात रोक के
- फ़रहत एहसास
यहाँ किसी को भी कुछ हस्ब-ए-आरज़ू न मिला
किसी को हम न मिले और हम को तू न मिला
- ज़फ़र इक़बाल
क्या पूछते हो कौन है ये किस की है शोहरत
क्या तुम ने कभी 'दाग़' का दीवां नहीं देखा
- दाग़ देहलवी
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