मुझसे नफरत ही सही पर जताने आ जाओ,
मैं खुद से ही अब जो ख़फा हो चला हूँ,
इक दफा मुझे मुझसे मिलाने आ जाओ,
तेरी याद में दर-ब-दर भटकूँ कब तलक,
सही या गलत कोई राह दिखाने आ जाओ,
अनकहे अनसुने रह गए जो अल्फ़ाज़,
अबकी उसे सुनने और सुनाने आ जाओ,
तुम भी नेह का वर्षों से प्यासे लग रहे हो,
आओ अपनी यह प्यास मिटाने आ जाओ
No comments:
Post a Comment