हर हंसीन को तहे-दिल से सलाम करते है॥
ख़ाने-दिल है ये उजड़ा हुवा दयार नहीं
मेहमां बनते जो बरसों मक़ाम करते हैं ॥
वो कहे रात को दिन हो भी सके कि मुमकिन हैं ।
चराग सुबहा की गाज़ी में शाम करते हैं ॥
मेरी ना हो कभी उनसे अरे ख़ुदा न करे ।
फैसले ऐसे ही अहले निज़ाम करते हैं ॥
हम नये रिंद नहीं जो ना कहें किनारा करें I
निगाहे यार से तस्लीमे ज़ाम करते है ॥
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