Thursday, June 25, 2020

कम-बख़्त फिर भी चैन न पाए तो क्या करूं

अब आ गई है सहर अपना घर संभालने को
चलूं कि जागा हुआ रात भर का मैं भी हूं
- इरफ़ान सिद्दीक़ी 

मुझ में थे जितने ऐब वो मेरे क़लम ने लिख दिए
मुझ में था जितना हुस्न वो मेरे हुनर में गुम हुआ
- हकीम मंज़ूर

दिल को ख़ुदा की याद तले भी दबा चुका
कम-बख़्त फिर भी चैन न पाए तो क्या करूं
- हफ़ीज़ जालंधरी

इस बार इंतिज़ाम तो सर्दी का हो गया
क्या हाल पेड़ कटते ही बस्ती का हो गया
- नोमान शौक़

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