क्यूं संभाला है मैने इसे , क्या मजा ऐसे जीने में ॥
ख़्वाब में मेरे कोई आता नहीं, कोई दिल में हलचल मचाता नहीं ,
सुनी सुनी मेरी जिंदगी की फजा , कोई बनके बहारें भी आता नहीं ,,
जाने है वो कहां माहिया जिसकी , धड़कन है सीनेमें ॥
किरणों से बंधी उदासी मेरी , शाम प्यासी बढ़ाती है प्यासे मेरी ,
मन मसोसे मैं दिन को गुजारा करूं , नींद आती नहीं कि रात का क्या करूं ,,.
क्यूं बनाए हैं ये रात दिन की , रात होती महीने में ॥
ना तिजारत ना वादा किया प्यार का , हाथ थामुंगी में कल किसी गैर का ,
छोड़ अपना पराये घर जाऊंगी ,उसको कह सजन अंग लग जाऊंगी ,,
सोचते ही शर्म से नहा गई , हाय ठंडे पसीने में ॥
सोचती हूं कि अब मैं जतन क्या करूं , किससे जाकर में किसकी शिकायत करुं ,
जिसे देखा न भाला न पहचानती ,उसके बारे में कैसे बगावत करूं ,,
आज उट्ठे ये कैसी लहर , जैसे सागर हो सीने में ॥
दिल मेरा बन गया साज एहसास का , टूटता है कही तार फिर आस का ,
काटती हूं दिन तो किसी भी तरहा , जलता लगता है आलम मुझे रात का ,,
ख्वाब आते हैं एसे मुझे , मैं सजके बैठी सफिने में ॥
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