तू क्यों रात भर सोई नहीं
सब मुझको ही घेरे बैठे थे
इक तू ही थी जो रोई नहीं
दुनिया हमने छोड़ ही दी
ये ज़हर दवा होई ही नहीं
आज उसको सजना सँवरना
वो ही तेरे हैं हम कोई नहीं
मिट्टी की दीवारें बुलाती हैं
अच्छा चलता हूँ कोई नहीं...
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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