कौन सा लम्हा सोगवार न था
- शोहरत बुख़ारी
पत्थरों को न एहसास होगा कभी
रात दिन अश्क चाहे बहाते रहो
- ज्योती आज़ाद खतरी
इस पे तकिया किया तो था लेकिन
रात-दिन हम थे और बिस्तर था
- मीर तक़ी मीर
हो गई क्या बला मिरे घर को
रात-दिन तीरगी सी रहती है
- रियाज़ ख़ैराबादी
जब से आशिक़ हुआ हूँ उस का मैं
रात-दिन सिर्फ़ मुद्दआ' है दिल
- हकीम आग़ा जान ऐश
जो टूटती बिखरती सी रहती है रात दिन
कुछ इस तरह की एक सदा है ख़लाओं में
- ज़फ़र इक़बाल
दूर तेरी महफ़िल से रात दिन सुलगता हूँ
तू मिरी तमन्ना है मैं तिरा तमाशा हूँ
- अहमद राही
चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है
हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है
- हसरत मोहानी
रखो तुम बंद बे-शक अपनी घड़ियाँ
समय तो रात दिन चलता रहेगा
- राणा गन्नौरी
लम्हों के तार खींचता रहता था रात दिन
इक शख़्स ले गया मिरी सदियाँ समेट के
- कामिल अख़्तर
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