Sunday, June 21, 2020

इल्म है एक तहज़ीब शायरी

धूप में निकलो...
धूप में निकलो घटाओं में

नहाकर देखो

ज़िन्दगी क्या है, किताबों को

हटाकर देखो |


सिर्फ़ आँखों से ही दुनिया

नहीं देखी जाती

दिल की धड़कन को भी बीनाई*

बनाकर देखो |


पत्थरों में भी ज़बाँ होती है

दिल होते हैं

अपने घर के दरो-दीवार

सजाकर देखो |
 


क्या ज़रूरी है उसे जिस्म...
वो सितारा है चमकने दो

यूँ ही आँखों में

क्या ज़रूरी है उसे जिस्म

बनाकर देखो |


फ़ासला नज़रों का धोका भी

तो हो सकता है

चाँद जब चमके तो ज़रा हाथ

बढाकर देखो |

निदा फ़ाज़ली
 
कैसे आँसू नयन सँभालें...
कैसे आँसू नयन सँभाले।

मेरी हर आशा पर पानी,
रोना दुर्बलता, नादानी,
उमड़े दिल के आगे पलकें, कैसे बाँध बनालें।
कैसे आँसू नयन सँभाले।

समझा था जिसने मुझको सब,
समझाने को वह न रही अब,

समझाते मुझको हैं मुझको कुछ न समझने वाले।
कैसे आँसू नयन सँभाले।

मन में था जीवन में आते
वे, जो दुर्बलता दुलराते,

मिले मुझे दुर्बलताओं से लाभ उठाने वाले।
कैसे आँसू नयन सँभाले।
 
मन में था जीवन में आते...
समझाते मुझको हैं मुझको कुछ न समझने वाले।
कैसे आँसू नयन सँभाले।

मन में था जीवन में आते
वे, जो दुर्बलता दुलराते,

मिले मुझे दुर्बलताओं से लाभ उठाने वाले।
कैसे आँसू नयन सँभाले।

हरिवंशराय बच्चन
 
फ़ालतू अक़्ल मुझ में थी ही नहीं...
मज़हबी बहस मैं ने की ही नहीं 

फ़ालतू अक़्ल मुझ में थी ही नहीं 

अकबर इलाहाबादी

 
ये वो जन्नत है जिस में हूर नहीं... 
इल्म में भी सुरूर है लेकिन 

ये वो जन्नत है जिस में हूर नहीं 

अल्लामा इक़बाल
इक शख़्स की यादों को भुलाने के लिए हैं... 
ये इल्म का सौदा ये रिसाले ये किताबें 

इक शख़्स की यादों को भुलाने के लिए हैं 

जाँ निसार अख़्तर
हर बात को समझा न करो... 
लफ़्ज़ ओ मंज़र में मआनी को टटोला न करो 

होश वाले हो तो हर बात को समझा न करो 

महमूद अयाज़
इश्क़ पर आमाल की बुनियाद रख... 
अक़्ल को तन्क़ीद से फ़ुर्सत नहीं 

इश्क़ पर आमाल की बुनियाद रख 

अल्लामा इक़बाल
 
इल्म की इंतिहा है ख़ामोशी... 
इल्म की इब्तिदा है हंगामा 

इल्म की इंतिहा है ख़ामोशी 


फ़िरदौस गयावी
सब कुछ जो जानते हैं वो कुछ जानते नहीं... 
हद से बढ़े जो इल्म तो है जहल दोस्तो 

सब कुछ जो जानते हैं वो कुछ जानते नहीं 

ख़ुमार बाराबंकवी

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