Tuesday, June 9, 2020

बात करते हैं कुछ उन दिनों की,

बात करते हैं कुछ उन दिनों की, करते थे सब बातें चार
गाँव, मोहल्ले, गलियों में सब आपस में करते थे प्यार।

गुज़र गये वो लम्हें, बीत गये वो पल
सोशल डिस्टन्सिंग हैं आया, गुज़र जाएँगे ये पल।

चाहत है लोगों की, बीतें वो दिन आ जायें
पिछले कल की सोचें न हम, ये बीतें कल बन जायें।

घर बैठें हैं सब, करते है गुणगान
बिना मुश्किल सहें सब बीतें, ये पल आसान।

दुनिया में हैं कोहराम मचा, मानवता हैं शर्मसार
कहीं जानवर हैं फ़ंसा तो कहीं मनुष्य हैं बेकार।

दूर घड़ी जब दिख जाती हैं, समय की पाबंदी खुल जाती हैं
वक़्त न बचता जीवन में, भीड़ इकट्ठी यूँ ही हो जाती हैं।

कर लेते हैं बात आज की, कल है किसने देखा
आज करो कुछ, अभी करो, वरना रह जाओगे भूखा।

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