Wednesday, June 3, 2020

क्या खूब तमाशा है भाई

क्या खूब तमाशा है भाई,
हर रोम रुआँसा है भाई।
हर ओर लगे हैं मेले पर,
बस यहाँ निराशा है भाई।

ना प्रेम रहा ना प्रेमी हैं,
ना बचे कुशल अब क्षेमी हैं।
जो होंठ चढा दिल ना आया,
अब प्यार ज़रा सा है भाई।

इंसान करे है कलाकारी,
मैं भी हारा दुनिया हारी।
ये रूप सलोना देखो तो,
क्या खूब तराशा है भाई।

अंतर्मन देखो कचोट रहा,
हर मन जो पलता खोट रहा।
मृगतृष्णा से ही व्यापित है,
कब यहाँ तलाशा है भाई।

जीवन का दाँव लगा बैठा,
क्या निहित रहा क्या है पैठा।
जीना भी है अनमोल नहीं,
ये चौपड़ पासा है भाई।

चहुँओर लगे जयकारे थे,
अपने कितने वो सारे थे।
उम्मीद जगाये बैठे थे,
मिलता बस झाँसा है भाई।

लगता सोने सा चमचम है,
मानो आया हरने तम है।
जो दीख रहा वो रहा नहीं,
पीतल और काँसा है भाई।

ये बात बड़ी मामूली है,
पर पन्नों तक ही झूली है।
ये समझ कभी जो ना आयी,
क्या इसरो नासा है भाई।

है लेखन में भी झाँस नहीं,
सच को है मिलती सांस नहीं।
जो कल भरता हुंकार रहा,
वो बूत बना सा है भाई।

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