कभी बदन के लिए इक किरन ज़ियादा हुई
- नसीम सहर
हो गई शाम ढल गया सूरज
दिन को शब में बदल गया सूरज
- अतहर नादिर
शाम हुई तो सूरज सोचे
सारा दिन बेकार जले थे
- प्रेम भण्डारी
पिघलते देख के सूरज की गर्मी
अभी मासूम किरनें रो गई हैं
- जालिब नोमानी
तीरगी में नूर आएगा नज़र
डूबते सूरज को भी सज्दा करो
- अजीत सिंह हसरत
सूरज सर पे आ पहुँचा
गर्मी है या रोज़-ए-जज़ा
- नासिर काज़मी
यूँ जागने लगे तिरी यादों के सिलसिले
सूरज गली गली से निकलता दिखाई दे
- अहमद वसी
चले भी आओ कि ये डूबता हुआ सूरज
चराग़ जलने से पहले मुझे बुझा देगा
- बशीर फ़ारूक़ी
शाम को आओगे तुम अच्छा अभी होती है शाम
गेसुओं को खोल दो सूरज छुपाने के लिए
- क़मर जलालवी
मिरे सूरज आ! मिरे जिस्म पे अपना साया कर
बड़ी तेज़ हवा है सर्दी आज ग़ज़ब की है
- शहरयार
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