उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाए
चराग़ों को आँखों में महफ़ूज़ रखना
बड़ी दूर तक रात ही रात होगी
मुसाफ़िर हो तुम भी मुसाफ़िर हैं हम भी
किसी मोड़ पर फिर मुलाकात होगी
कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से
ये नए मिज़ाज का शहर है ज़रा फ़ासले से मिला करो...
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती ना मिला,
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी ना मिला।
हम दिल्ली भी हो आये, और लाहौर भी घूमे,
ऐ यार! मगर तेरी गली; तेरी गली है।
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
इतना मत चाहो उसे, वो बेवफ़ा हो जाएगा,
हम भी दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे, रास्ता हो जाएगा...!
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिन्दा न हों
महक रही है ज़मीं चाँदनी के फूलों से
ख़ुदा किसी की मोहब्बत पे मुस्कुराया है
लोग टूट जाते हैं एक मकाँ बनाने में,
तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में।
कह देना समन्दर से हम ओस के मोती है
दरिया की तरह तुझसे मिलने नही आयेगे।
अगर फ़ुर्सत मिले पानी की तहरीरों को पढ़ लेना
हर इक दरिया हज़ारों साल का अफ़्साना लिखता है!
उदास रात है कोई तो ख़्वाब दे जाओ,
मिरे गिलास में थोड़ी शराब दे जाओ!
बहुत से और भी घर हैं ख़ुदा की बस्ती में,
फ़क़ीर कब से खड़ा है जवाब दे जाओ!
परखना मत परखने में कोई अपना नहीं रहता
किसी भी आईने में देर तक चेहरा नहीं रहता!
सात संदूकों में भरकर दफ्न कर दो नफरतें,
आज इंसा को मोहब्बत की जरूरत है बहुत!
तुम मुझे छोड़ के जाओगे तो मर जाऊंगा मैं
यूं करो जाने से पहले मुझे पागल कर दो
ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं
तुमने मिरा कांटों भरा विस्तर नही देखा!
पत्थर मुझे कहता है मिरा चाहने वाला!
मैं मोम हूँ उस ने मुझे छू कर नहीं देखा!!
ऐ ज़िंदगी तुने मुझे कब्र से कम दी है ज़मीन
पैर फलाऊँ तो दीवार से सर लगता है!
सोचा नहीं अच्छा बुरा देखा सुना कुछ भी नहीं
माँगा ख़ुदा से रात दिन तेरे सिवा कुछ भी नहीं
देखा तुझे सोचा तुझे चाहा तुझे पूजा तुझे
मेरी वफ़ा मेरी ख़ता, तेरी खता कुछ भी नहीं
ख़ुदा की इतनी बड़ी कायनात में मैंने,
बस एक शख़्स को मांगा मुझे वही ना मिला।
तुम मोहब्बत को खेल कहते हो,
हम ने बर्बाद ज़िन्दगी कर ली..
फ़ासला नज़रों का धोखा भी तो हो सकता है
वो मिले या ना मिले हाथ बढ़ा कर देखो!
इसी लिए तो यहाँ अब भी अजनबी हूँ मैं
तमाम लोग फ़रिश्ते हैं आदमी हूँ मैं
अगर आसमाँ की नुमाइशों में मुझे भी इज़्न-ए-क़याम हो
तो मैं मोतियों की दुकान से तिरी बालियाँ तिरे हार लूँ !
घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला...
पेंच उनकी ज़ुल्फ का, और बल मेरी तकदीर का
क्या मिला है सिलसिला, ज़ंज़ीर से ज़ंजीर का.!!!
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