"साथ हो तेरा, मेहरबानी हो रब़ की
और क्या चाहिए?
कहने को सब कुछ है,
शुकुन के दो पल मिल जाए
और क्या चाहिए?
सम्भल के चलते चलते थक गए है,
थोड़ा बहक जाए,
और क्या चाहिए?
हमारा अपना ही अन्दाज है,
अगर शब्दों मे जाॅ भी आ जाए
और क्या चाहिए?
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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