Saturday, June 6, 2020

बस इसी उम्मीद पे होता गया बर्बाद मैं

बस इसी उम्मीद पे होता गया बर्बाद मैं
गर कभी बिखरा तो आ कर तू संभालेगा मुझे
- अक्स समस्तीपुरी


घर में क्या आया कि मुझ को
दीवारों ने घेर लिया है
- मोहम्मद अल्वी


रोज़ वो ख़्वाब में आते हैं गले मिलने को
मैं जो सोता हूँ तो जाग उठती है क़िस्मत मेरी
- जलील मानिकपूरी

मज़मून सूझते हैं हज़ारों नए नए
क़ासिद ये ख़त नहीं मिरे ग़म की किताब है
- निज़ाम रामपुरी

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