Saturday, June 6, 2020

मैं शेर कहता था वो दास्ताँ सुनाती थी

ज़न-ए-हसीन थी फूल चुन लाती थी
मैं शेर कहता था वो दास्ताँ सुनाती थी

ये लोग तुम्हें जानते नही है अभी
वो गले लगाकर मेरा हौसला बढ़ाती थी

उसे किसी से मोहब्बत थी और वो मैं नही था
ये बात मुझसे ज़्यादा उसे रुलाती थी

अरब लहू था बदन में रंग सुनहरा था
वो मुस्कुराती नही थी दिए जलाती थी...

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