वो बांसुरी की धुन सुने हुए दिन गुज़र गए
मुरझा गए हर गुलाब उस चमन के
तुम्हे गुलशन में आए दिन गुज़र गए
नहीं कुछ फिकर ना अपना पता है
की,
मुझे जुल्फें संवारे हुए दिन गुज़र गए
बस दुआ करो वो आ जाए कहीं से
देखे हुए किसी को दिन गुज़र गए!
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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