जानबूझकर हो या अनजाने से,
स्वीकार तो करनी ही पड़ेगी हमें
क्या मिलेगा यूँ दिल जलाने से।
हम दुबारा मिलकर बात कर लेंगे
मसले हल होंगे फिर अपनाने से,
ख़ता तो हुई है खातमा भी करेंगे
कुछ नहीं मिलेगा बिछड़ जानें से।
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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