तुझ से बिछड़ के ज़िंदगी दुनिया से जा मिली
~ साक़ी फ़ारुक़ी
घुट-घुट कर यूँ जीने की मजबूरी क्या है,
हँस कर देख, तेरी खुशी से जरूरी क्या है.
खता-ए-इश्क़ है तो रुसवा सरेआम कीजिए
हम अज़ल से हैं बदनाम, और बदनाम कीजिए.
अब जो कोई पूछे भी तो उस से क्या शरह- ए- हालात करें,
दिल ठहरें तो दर्द सुनाएं दर्द थमे तो बात करें!
भूले हैं रफ्ता रफ्ता उन्हें मुद्दतो में हम।
किश्तों में खुदकुशी का मज़ा हमसे पूछिए।
हुआ है तुझ से बिछड़ने के बा'द ये मा'लूम
कि तू नहीं था तिरे साथ एक दुनिया थी
तुमने लहज़ा मीठा रखकर तीखी बातें बोलीं हैं
हमने बातें मीठी की हैं लहज़ा तीखा रक्खा है।
जाम खाली रखकर, आंखो से पिला दी उसने !
हम होश में आकर भी, हफ़्तों बेहोश रहे !!
हमको हमारे सब्र का खूब सिला दिया गया
यानि दवा ना दी गई दर्द बढ़ा दिया गया
तेरी माेहब्बत की डालीपर, एक फ़ुल बनके उभर गया,
पत्ते काॅंटाें काे छुपाने मे जुट गए,मै तेरी खुषबु से भर गया,
कुछ पत्ते गीरा दीए तुने, उस हादसे से मै थाेडा डर गया,
मेरी उम्र थोड़ी, तेरी फ़िक्र ज़्यादा, उन्ही पत्ताें पर मै गीर गया!
चलो क़ुबूल कर लेता हूँ शिकस्त मेरी दुआओं की
तन्हाई को मान लेता हूँ हक़ीक़त मेरी वफ़ाओं की
मंज़िल तो थी लेकिन कोई राह ना रही
तेरे जाने के बाद जीने की चाह ना रही!
ना वफा दे ना अदाई दे,
जब भी नजर उठे तू दिखाई दे ..
तेरे बारे में चर्चा किसी के दिल में हो..
करम इतना हो कि तू सुनाई दे!
दिल की यह दीवानगी अब सजा लगने लगी
चुभती हुई मुझे अब हवा और फिजा लगने लगी
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