Monday, May 4, 2020

कहते हैं कि उम्मीद पे जीता है ज़माना

कहते हैं कि उम्मीद पे जीता है ज़माना
वो क्या करे जिस को कोई उम्मीद नहीं हो
- आसी उल्दनी


ऐ आसमान तेरे ख़ुदा का नहीं है ख़ौफ़
डरते हैं ऐ ज़मीन तिरे आदमी से हम
- अज्ञात

दिया ख़ामोश है लेकिन किसी का दिल तो जलता है
चले आओ जहां तक रौशनी मालूम होती है
- नुशूर वाहिदी

बहुत मुश्किल है दुनिया का सँवरना
तिरी ज़ुल्फ़ों का पेच-ओ-ख़म नहीं है
- असरार-उल-हक़ मजाज़

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