Friday, May 1, 2020

लोगों का मकां तो होता है, मगर घर नहीं होता

लोगों का मकां तो होता है, मगर घर नहीं होता
अब दिलों में मोहब्बत का, वो असर नहीं होता

पाल रखा है जन्नत का ख़्वाब तो हर आदमी ने,
मगर वो कपट की चालों से, बेख़बर नहीं होता

यारो बन जाती ये दुनिया वीरानियों का मरकज़,
गर रहमो करम का दुनिया में, बसर नहीं होता

हम तो बदल देते हैं तक़रीरें मतलब के हिसाब से,
पर कुदरत का फैसला, इधर से उधर नहीं होता

काश न बदल जाती इस इंसान की नियति यारो,
तो इस ज़िन्दगी का ये ढांचा, यूं लचर नहीं होता

न बोते हम डगर में खुद यूं बीज काँटों के, 
तो ज़िंदगी का ये सफर भी, यूं दुष्कर नहीं होता

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