राग जब बसता है मन में
एक सम रहता नहीं है
बदलता हरेक क्षण में।
धैर्य का कहां प्रश्न बोलो?
यह तो पथ बेचैनियों का
है उबलता रक्त भीतर
प्रेमियों की धमनियों का
जब कभी जो वेग होता
काटती है पाट अपने
तोड़ती अवरोध सारे
गहरे करती घाट अपने।
तल का है जो बोध होता
मंद होती धार देखो
तलछटों से पाट देती
प्रीत का संसार देखो।
कुछ तो है अवरोध बैठा
मौन जो तेरा अचल है
शून्य में क्यूं ताकते हैं?
नेत्र जो तेरे सजल हैं।
तू समेटे दुर्ग भीतर
वेदना के शिखर पर जो
द्वार खोलो आऊं भीतर
रच रही संकोच को क्यों?
आओ जल के दीप हो लें
त्राण कर डालें तमस का
प्राण अपने वेग पा लें
योग हो अपना सरस सा
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