Saturday, May 2, 2020

दिखते हैं आदमी से मगर, वो दरिंदे हो गए

दिखते हैं आदमी से मगर, वो दरिंदे हो गए
शौहरत पाने की ललक में, वो अंधे हो गए

न दिखती है सिसकती हुई इंसानियत उन्हें,
यारो सोहबतों के असर में, वो दुरंगे हो गए

अब वो खरीदने लगे हैं मजबूरियाँ लोगों की,
जितने थे नेक दिल, उतने ही कुढंगे हो गए

अपने कर्मों को आखिर छुपायेंगे कब तलक,
मुखौटों में रह कर भी यारो, वो नंगे हो गए

पनपने लगा है हर तरफ नफरतों का जंगल,
अब मोहब्बतों के भाव भी, बेहद मन्दे हो गए

जाने बदला है मिज़ाज़ कैसा ज़माने का "मिश्र",
अब तो ईमानो धरम, बिकने के धंधे हो गए

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