एक हथौड़े वाला घर में और हुआ।
हाथी सा बलवान, जहाजी हाथों वाला और हुआ।
सूरज सा इंसान, तरेरी आंखोंवाला और हुआ।
-केदारनाथ अग्रवाल
''जो शिलाएं तोड़ते हैं
जिन्दगी को वह गढ़ेंगे जो शिलाएं तोड़ते हैं
जो भगीरथ नीर की निर्भय शिराएं मोड़ते हैं
यज्ञ की इस शक्ति-श्रम को
श्रेष्ठतम मैं मानता हूँ।''
-केदारनाथ अग्रवाल
मुनव्वर राणा ने लिखा-
सो जाते हैं फुटपाथ पर अखबार बिछा कर
मजदूर कभी नींद की गोली नहीं खाते।
मजदूर कभी नींद की गोली नहीं खाते।
रामावतार त्यागी ने लिखा-
''किसी गुमनाम से इक गांव में पैदा हुए थे हम
नहीं मालूम पर कोई अशुभ सा ही महीना था
रजाई की जगह ओढ़ी पुआलों की भभक हमने
विरासत में मिला जो कुछ हमारा ही पसीना था। ''
अकलमंदी हमारे नाम के आगे नहीं जुड़ती
मगर भोले नहीं इतना कि जितना आम दिखते हैं
हमें हस्ताक्षर करना न आया चेक पर माना
मगर दिल पर बड़ी कारीगरी से नाम लिखते हैं
हमारे अंत की चर्चा गुलाबों तक रहे सीमित
हमारे जन्म की तारीख काग़ज़ पर नहीं लिखना
न गंगाजल न हलाहल न कोई और ही जल हो
किसी लाचार आंसू को हमारे भाल पर लिखना।
वो जिसके हाथ में छाले हैं, पैरों में बिवाई है
उसी के दम से रौनक आपके बंगलों में आई है।
महल से झोपड़ी तक एकदम घुटती उदासी है
किसी का पेट खाली है किसी की रूह प्यासी है
कि नंगी पीठ हो जाती है जब हम पेट ढँकते हैं
मेरे हिस्से की आज़ादी भिखारी के क़बा-सी है।
-अदम गोंडवी
न हो कमीज़ तो पांवों से पेट ढँकते हैं
ये लोग कितने मुनासिब है इस सफर के लिए।
-दुष्यंत कुमार
यश मालवीय ने लिखा-
दूध नहीं मिलता
बच्चे को खून पिलाती है
धधक रहे सूरज से खुलकर
आंख मिलाती है
भूखे सच के आगे खुद कोरख कर देख रही
पता नहीं रोटी झुलसी है
या झुलसा चेहरा।
साधन नहीं है कोई भी, भरने हैं कई पेट
इक टोकरी है, सर है कि मज़दूर दिवस है।
-ओम प्रकाश यती
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