जश्न तन्हाइयों का मनाते रहो
रौनकें सब की सब अपने अंदर ही हैं
अपने अंदर ही मेला लगाते रहो
काम कोई भी दानिश नहीं है अगर
ख़ुद को कर लो ख़फ़ा फिर मनाते रहो
दर्द सीने में छुपाए रक्खा
हमने माहौल बनाए रक्खा ।
मौत आई थी कई दिन पहले,
उसको बातों में लगाए रक्खा ।
दश्त में आई बला टलने तक
शोर चिड़ियों ने मचाए रक्खा ।
वरना तारों को शिकायत होती,
हमने हर ज़ख़्म छुपाए रक्खा ।
कोई कांटा न हो गुलाबों में
ऐसा मुमकिन है सिर्फ़ ख़्वाबों में
दिल को कैसे क़रार आता है
ये लिखा ही नहीं किताबों में
कितने सीधे सवाल थे मेरे
वो उलझता गया जवाबों में
मैं ही उसका ग़ुरूर था दानिश
और मुझी को रक्खा ख़राबों में
तितली सा इनकार हो कोई
फूल सा कोई इज़हार हो कोई
मुझसे क्यूंकर मैं टकराऊं
मुझमें क्यों दीवार हो कोई
दर्द के सूखते दरिया में रवानी के लिए
कैसे कैसे मैं जतन करता हूं पानी के लिए
वरना बेमौत ही मर जाएंगे सारे किरदार
एक इनकार ज़रूरी है कहानी के लिए
हम अपने दुख को गाने लग गए हैं
मगर इस में ज़माने लग गए हैं
किसी की तर्बियत का है करिश्मा
ये आँसू मुस्कुराने लग गए हैं
कहानी रुख़ बदलना चाहती है
नए किरदार आने लग गए हैं
ये हासिल है मिरी ख़ामोशियों का
कि पत्थर आज़माने लग गए हैं
ये मुमकिन है किसी दिन तुम भी आओ
परिंदे आने जाने लग गए हैं
जिन्हें हम मंज़िलों तक ले के आए
वही रस्ता बताने लग गए हैं
शराफ़त रंग दिखलाती है 'दानिश'
कई दुश्मन ठिकाने लग गए हैं
मेरी ख़मोशी को दुआ समझो
और जो बोल दूं हुआ समझो
वो जा रोता है ख़्वाब में मेरे
उसको रोता हुआ ख़ुदा समझो
मैं तो ज़ंगल का फूल हूं दानिश
मुझको हर हाल में खिला समझो
-दानिश
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