Sunday, March 22, 2020

तुम्हारी तरह से कोई गले लगाए मुझे

बशीर बद्र

अगर यक़ीं नहीं आता तो आज़माए मुझे
वो आइना है तो फिर आइना दिखाए मुझे

अजब चराग़ हूं दिन रात जलता रहता हूं
मैं थक गया हूं हवा से कहो बुझाए मुझे

मैं जिस की आंख का आंसू था उस ने क़द्र न की
बिखर गया हूं तो अब रेत से उठाए मुझे

बहुत दिनों से मैं इन पत्थरों में पत्थर हूं
कोई तो आए ज़रा देर को रुलाये मुझे

मैं चाहता हूं कि तुम ही मुझे इजाज़त दो
तुम्हारी तरह से कोई गले लगाए मुझे

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