कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं
- जाँ निसार अख़्तर
किस तरह जमा कीजिए अब अपने आप को
काग़ज़ बिखर रहे हैं पुरानी किताब के
- आदिल मंसूरी
वो आए घर में हमारे ख़ुदा की क़ुदरत है
कभी हम उन को कभी अपने घर को देखते हैं
- मिर्ज़ा ग़ालिब
दोस्तों को भी मिले दर्द की दौलत या रब
मेरा अपना ही भला हो मुझे मंज़ूर नहीं
- हफ़ीज़ जालंधरी
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