Friday, March 13, 2020

अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें

अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें 
कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं 
- जाँ निसार अख़्तर

किस तरह जमा कीजिए अब अपने आप को 
काग़ज़ बिखर रहे हैं पुरानी किताब के 
- आदिल मंसूरी
वो आए घर में हमारे ख़ुदा की क़ुदरत है 
कभी हम उन को कभी अपने घर को देखते हैं 
- मिर्ज़ा ग़ालिब
दोस्तों को भी मिले दर्द की दौलत या रब 
मेरा अपना ही भला हो मुझे मंज़ूर नहीं 
- हफ़ीज़ जालंधरी

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