ग़म खाइए बहुत जो ख़याल-ए-सुरूर है
- इस्माइल मेरठी
पता है कि वहां पानी नहीं है
मगर उम्मीद सहरा छानती है
- अश्क अलमास
एक उम्मीद जाग उठती है
आसमां जब भी देखता है मुझे
- बलवान सिंह आज़र
सिर्फ़ उस के दर से उम्मीद
सिर्फ़ अपना आसरा है
- इक़बाल ख़ुसरो क़ादरी
दर्द ग़म अश्क और मायूसी
तेरी उम्मीद सब पे भारी है
- धीरेंद्र सिंह फ़य्याज़
ऐ काश वफ़ा की रौशनी से
उम्मीद का इक दिया जलाऊँ
- परवीन फ़ना सय्यद
फिर से बादल हैं आसमानों में
अब्र उम्मीदें ले कर आया है
- उज़ैर रहमान
धूप कभी चमकेगी इस उम्मीद पे मैं
बर्फ़ के दरिया में सदियों से लेटा हूँ
- अम्बर बहराईची
जब भी निकला सितारा-ए-उम्मीद
कोहर के दरमियान से निकला
- शकेब जलाली
No comments:
Post a Comment